इगास त्यौहार या इगास बग्वाल ( igas festival ) उत्तराखंड का प्रसिद्ध लोकपर्व है। यह त्यौहार दीपावली पर्व के 11 दिन बाद मनाया जाता है। 2021 में इगास त्यौहार 14 नवंबर 2021 को रविवार के दिन मनाया जाएगा। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री श्री पुष्कर धामी जी ने इगास 2021 के लिए सार्वजनिक अवकाश की घोषणा की है। इगास पर्व 2021 रविवार के दिन होने के कारण यह अवकाश 15 नवंबर 2021 को मान्य होगा।
इगास का अर्थ (Meaning of Igas | egaas festival )
इगास का मतलब गढ़वाली भाषा मे एकादशी होता है। और बग्वाल का मतलब दीपावली । अतः कार्तिक मास शुक्लपक्ष की एकादशी को मनाई जाने वाली दीपावली को उत्तराखंड की भाषा मे इगास बग्वाल ( Egaas bagwaal ) कहा जाता है। उत्तराखंड गढ़वाल में 4 बग्वाल होती हैं। प्रथम बग्वाल कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को होती है। दूसरी बग्वाल कार्तिक अमावस्या को मनाई जाती है। यह बग्वाल (दीपावली ) पूरे देश में मनाई जाती है। उत्तराखंड गढ़वाल की तीसरी बग्वाल ,जिसे बड़ी बग्वाल भी कहते हैं, यह कार्तिक माह की एकादशी को इगास बग्वाल के रूप में मनाई जाती है। और चौथी बग्वाल जिसे रिख बग्वाल कहते हैं। इस चौथी बग्वाल को गढ़वाल के प्रतापनगर, जौनपुर, चमियाला,थौलधार, रवाईं और जौनसार क्षेत्र में बूढ़ी दीवाली के रूप में मनाई जाती है। यह चौथी बग्वाल ,दूसरी बग्वाल के ठीक एक माह बाद मनाई जाती है। ( Igas festival in Uttarakhand 2021 (
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क्यों मनाई जाती है इगास बग्वाल ( Igas festival 2021 ) –
इगास त्यौहार मनाने के विषय मे उत्तराखंड में अनेक धारणाएं और मान्यताएं प्रचलित है। पहली मान्यता के अनुसार , सारे देश मे दीपावली भगवान राम के अयोध्या आगमन की खुशी में दीपावली पर्व मनाया जाता है। लेकिन कहते हैं कि उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में भगवान राम के लौटने की खबर 11 दिन बाद मिली इसलिए पहाड़ों में 11 दिन बाद खुशियां मनाई गई । लेकिन इस मान्यता के पीछे तर्क मजबूत नहीं है। क्योंकि उत्तराखंड के पहाड़वासी , इगास के साथ आमावस्या वाली दीपावली भी मनाते हैं ।और इगास उत्तराखंड के कुछ भागों में मनाई जाती है। और उत्तराखंड के अनेक भागों में अलग अलग तिथियों को बूढ़ी दीपावली मानाते हैं।
इगाश (Igas festival ) मनाने के पीछे दूसरी मान्यता यह है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को गढ़वाल के वीर माधो सिंह भंडारी , दापाघाट तिब्बत का युद्ध जीतकर ,अपने सैनिकों के साथ घर लौटे थे। वीर माधो सिंह भंडारी के विजयी होकर लौटने की खुशी में ,लोगो ने एकादशी के दिन बग्वाल खेल कर खुशियां मनाई ।और यह खुशी का अवसर कालांतर में इगास त्योहार के रूप में मानने लगे।
इगास बग्वाल मनाने के पीछे यह मान्यता तार्किक लगती है। अतः हम कह सकते हैं कि इगास ( egaas festival ) उत्तराखंड का विजयोत्सव है।

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इस त्यौहार से जुड़ी लोक कथा ( Story of Igas festival )-
इगास त्यौहार से एक स्थानीय लोक कथा भी जुड़ी है। उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में भैलो खेल कर बग्वाल ( दीपावली ) मनाई जाती है। कहा जाता है,कि उत्तराखंड गढ़वाल में किसी एक गाव में रहने वाला व्यक्ति ,अमावस्या की बग्वाल ( दीपावली के दिन ) के दिन भैलो खेलने के लिए,छिलके लेने जंगल गया और 11 दिन तक वापस नही आया। 11वे दिन जब वह व्यक्ति वापस आया तब यह पर्व मनाया गया। तब से बग्वाल को भैलो खेलने की परम्परा शुरू हुई। ( Igas festival in Uttarakhand 2021 )
कैसे मनाते हैं बग्वाल( बूढ़ी दीवाली ) पर्व ? ( Egaas festival 2021 )
मुख्य दीपावली पर्व की तरह भी इगास बग्वाल को भी घरों में साफसफाई और दीये जलाए जाते हैं। इस त्यौहार के दिन गाय ,बैलों को पौष्टिक भोजन कराया जाता है। बैलों के सींगों में तेल लगाया जाता है। गोवंश के गले मे माला पहनाकर उनकी पूजा करते हैं। बग्वाल पर्व पर गढ़वाल में बर्त खींचने की परंपरा भी है। यह बर्त का मतलब है, मोटी रस्सी ।
इगास पर्व पर भैलो खेलने की परम्परा है। भैलो चीड़ या भीमल आदि की लकड़ियों की गठरनुमा मशाल होती है। जिसे रस्सी से बांधकर शरीर के चारो ओर घुमाते हैं। तथा खुशियां मनाते हैं।हास्यव्यंग करते हुए ,लोक नृत्य और लोककलाओं का प्रदर्शन भी इस दिन किया जाता है। कई क्षेत्रों में पांडव नृत्य की प्रस्तुतियां भी की जाती हैं।
इगास पर्व की शुभकामनाएं || Happy igas ( egaas) Festival 2021 –
इगास बग्वाल के अवसर पर उत्तराखंड वासी खुशियां मनाते हुए एक दूसरे को इगास त्यौहार की शुभकामनाएं देते हैं। इगास ( egaas ) के शुभावसर यह लोक गीत गाया जाता है। ( Happy igas festival 2021 )
सुख करी भैलो, धर्म को द्वारी, भैलो।
धर्म की खोली, भैलो जै-जस करी
सूना का संगाड़ भैलो, रूपा को द्वार दे भैलो।।
खरक दे गौड़ी-भैंस्यों को, भैलो, खोड़ दे बाखर्यों को, भैलो
हर्रों-तर्यों करी, भैलो।
भैलो रे भैलो, खेला रे भैलो।
बग्वाल की राति खेला भैलो।।
बग्वाल की राति लछमी को बास
जगमग भैलो की हर जगा सुवास
स्वाला पकोड़ों की हुई च रस्याल
सबकु ऐन इनी रंगमती बग्वाल
नाच रे नाचा खेला रे भैलो।
अगनी की पूजा, मन करा उजालो
भैलो रे भैलो।।।