Sunday, April 21, 2024
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हरेला पर्व 2024 और हरेला पर्व की शुभकामनाएं।

हरेला पर्व 2024

उत्तराखंड प्राचीनकाल से अपनी परम्पराओं द्वारा प्रकृति प्रेम और प्रकृति के प्रति अपनी जिम्मेदारी और प्रकृति की रक्षा की सद्भावना को दर्शाता आया है। इसीलिये उत्तराखंड को देवभूमी और प्रकृति प्रदेश भी कहते हैं। प्रकृति को समर्पित उत्तराखंड का लोक पर्व हरेला प्रत्येक वर्ष कर्क संक्रांति श्रावण मास के पहले दिन मनाया जाता है।  कैलेंडर के अनुसार 2024 में हरेला त्योहार 16 जुलाई को मनाया जाएगा।  हरेला त्योहार के ठीक 10 दिन पहले यानी 07 जुलाई 2024 के दिन हरेला बोया जाएगा। कई लोग 11 दिन का हरेला बोते हैं इसलिए  11 दिन के हिसाब से 6 जुलाई को बोया जायेगा। उत्तराखंड की राज्य सरकार ने 16 जुलाई 2023  को हरेला पर्व का सार्वजनिक अवकाश घोषित किया है।

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उत्तराखंड का यह पर्व प्रकृति प्रेम के साथ कृषि विज्ञान को भी समर्पित है। इस त्यौहार में मिश्रित अनाज को उगाया जाता है। मकर संक्रांति से सूर्य उत्तरायण हो जाने के बाद दिन बढ़ने लगते हैं। वैसे ही कर्क संक्रांति से सूर्य भगवान दक्षिणायन हो जाते हैं।और कहा जाता है कि इस दिन से दिन रत्ती भर घटने लगते है।

हरेला पर्व

हरेला पर्व कैसे मानते हैं

इसे बोने के लिए हरेला त्यौहार से लगभग 12-15 दिन पहले से तैयारी शुरू हो जाती है। शुभ दिन देख कर घर के पास शुद्ध स्थान से मिट्टी निकाल कर सुखाकर,छान कर रख लेते हैं। हरेले में 7 या 5 प्रकार का अनाज का मिश्रण करके  बोया जाता है। हरेला के10 दिन पहले देवस्थानम में लकड़ी की पट्टी में छनि हुई मिट्टी को लगाकर, उसमे 7 या 5 प्रकार का मिश्रित अनाज बो देते हैं। इनमे दो या तीन दिन बाद अंकुरण शुरू हो जाता है। सामान्यतः हरेले की देख रेख की जिम्मेदारी घर की मातृशक्ति की होती है। घर परिवार में जातकाशौच या मृतकाशौच होने की स्थिति में इसको बोने से लेकर देखभाल तक का कार्यभार घर की कुवारी कन्याओं पर आ जाता है।

हरेला में ये अनाज बोये जाते हैं –

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इसमे में धान,मक्की, उड़द, गहत, तिल और भट्ट आदि को मिश्रित करके बो देते है। इन अनाजों को बोने के पीछे संभवतः मूल उदेश्य यह देखना होगा की इस वर्ष इन धान्यों की अंकुरण की स्थिति कैसी रहेगी। इसे मंदिर के कोने में सूर्य की किरणों से बचा के रखा जाता है।

हरेला बोते समय ध्यान देने योग्य बातें –

  • मिश्रित अनाज के बीज सड़े न हो।
  • हरेले को उजाले में नही बोते, हरेले को सूर्य की रोशनी से बचाया जाता है।
  • प्रतिदिन सिंचाई संतुलित और आराम से किया जाती है। ताकि फसल सड़े ना और पट्टे की मिट्टी बहे ना।

हरेले की देख रेख  –

हरेले की पूर्व संध्या को हरेले की गुड़ाई निराई की जाती है। बांस की तीलियों से इसकी निराई गुड़ाई की जाती है। हरेला के पुटों को कलावा धागे से बांध दिया जाता है। गन्धाक्षत चढ़ाकर उसका नीराजन किया जाता है। इसके अलावा कुमाऊं क्षेत्र में कई स्थानों में हरेले के अवसर पर  डिकरे बनाये जाते हैं। चिकनी मिट्टी में रुई लगाकर शिव पार्वती ,गणेश भगवान के डीकरे बनाते हैं। डिकारे को हरेले के बीच मे उनकी पूजा करते हैं। मौसमी फलों का चढ़ावा भी चड़ाया जाता है। इस दिन छउवा या चीले बनाये जाते है। वर्तमान में यह परम्परा कम हो गयी है।

पूजन व त्यौहार की प्रमुख परम्पराएं

हरेले के दिन पंडित जी देवस्थानम में हरेले की प्राणप्रतिष्ठा करते हैं। इस पर्व पर पकवान बनाये जाते हैं। पहाड़ों में किसी भी शुभ कार्य या त्योहार पर उड़द की पकोड़ी बनानां जरूरी होता है।  हरेले के दिन प्रकृति की रक्षा के प्रण के साथ पौधे लगाते हैं। कटे हुए हरेले में से दो पुड़ी या कुछ भाग छत के शीर्षतम बिंदु जिसे धुरी कहते है, वहा रख दिया जाता है। इसके बाद कुल देवताओं और गाव के सभी मंदिरों में चढ़ता है। साथ साथ मे घर मे छोटो को बड़े लोग हरेले की शुभकामनाओं के साथ हरेला लगाते हैं। गाव में या रिश्तेदारी में नवजात बच्चों को विशेष करके हरेला का त्योहार भेजा जाता है।

यहाँ शौका जनजातीय ग्रामीण क्षेत्रों में हरियाली की पाती ( एक खास वनस्पति ) का टहनी के साथ प्रतीकात्मक विवाह भी रचाया जाता है। अल्मोड़ा के कुछ क्षेत्रों में नवविवाहित जोड़े लड़की के मायके फल सब्जियाँ लेकर जाते हैं, जिसे ओग देने की परंपरा कहते हैं। नवविवाहित कन्या का प्रथम हरेला मिलकर मायके में मनाना आवश्यक माना जाता है। जो कन्या किसी कारणवश अपने मायके नही जा सकती उसके लिए ससुराल में ही हरेला और दक्षिणा भेजी जाती है। गोरखनाथ जी के मठों में रोट चढ़ाए जाते हैं। गांवों में बैसि बाइस दिन की साधना जागर इसी दिन से शुरू होती है।

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गढ़वाल में हरेला

हरेला पर्व कुमाऊं क्षेत्र में प्रमुखता से मनाया जाता है। गढ़वाल मंडल में यह पर्व एक कृषि पर्व के रूप में मनाया जाता है। गढवाली परम्परा में कुल देवता के मंदिर के सामने जौ उगाई जाती है। इसे बोने का कार्य केवल पुरुष करते हैं। और वो जिनका यज्ञोपवीत हो चुका होता है। चमोली में यह त्यौहार हरियाली देवी की पूजा के निमित्त मनाया जाता है। देवी के प्रांगण में जौ उगाई जाती है। पूजन के बाद सब स्वयं धारण करते हैं।

हरेला पर गीत –

हरेला पर्व के दिन एक दूसरे शुभकामनायें देते हैं। हरेले की शुभकामनाएं देने के लिए ये गीत गाते हैं-

जी रये, जागी राये।
यो दिन बार भेटने राये।
स्याव जस बुद्धि है जो।
बल्द जस तराण हैं जो।
दुब जस पनपने राये।
कफुवे जस धात हैं जो।
पाणी वाई पतौउ हैं जे।
लव्हैट जस चमोड़ हैं जे।
ये दिन यो बार भेंटने राये।
जी रये जागी राये।

हरेले पर बुजुर्ग बच्चो कोआशीर्वाद देते हैं। हरेला उत्तराखंड का प्रमुख लोकपर्व है। यह उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोक पर्वों में से एक है। हरेला त्यौहार प्रकृति से प्रेम एवं आपसी प्रेम का प्रतीक त्यौहार है।

हरेला पर वृक्षारोपण

इस त्यौहार पर वृक्षारोपण को विशेष महत्व दिया जाता है। हरेला पर्व पर लगाया गया पौधा जल्दी जड़ पकड़ लेता है। मूलतः यह पर्यावरण के प्रति जागरूक उत्तराखण्डी जनता का वृक्षारोपण के द्वारा वनस्पति की रक्षा और विकास अन्यतम लक्ष्य रहा होगा। जिसे एक मान्य त्यौहार का रूप दे दिया गया होगा। हरेले के दिन पूरे प्रदेश में वृक्षारोपण का कार्यक्रम चलाया जाता है। सरकार और जनता इसमे खुल कर भागीदारी करती हैं।

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी देवभूमि दर्शन के संस्थापक और लेखक हैं। बिक्रम सिंह भंडारी उत्तराखंड के निवासी है । इनको उत्तराखंड की कला संस्कृति, भाषा,पर्यटन स्थल ,मंदिरों और लोककथाओं एवं स्वरोजगार के बारे में लिखना पसंद है।
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