जैसा की हम सभी लोगो को ज्ञात है कि मकर संक्रांति पर्व को उत्तराखंड कुमाऊं मंडल में घुघुतिया त्यौहार , उत्तरैणी , पुसुड़िया त्यौहार और गढ़वाल मंडल में खिचड़ी संग्रात आदि नामो से बड़ी धूम धाम के साथ मनाया जाता है। प्रस्तुत लेख में हम घुघुतिया त्यौहार के बारे में संक्षिप्त जानकारी और घुघुतिया की शुभकामना फोटो ( HAPPY GHUGHUTIYA IMAGE ) का संकलन करने जा रहे हैं।इस लेख में – 2023 में घुघुतिया त्यौहार कब है ? घुघुतिया क्या है ? घुघुतिया की कहानी ,घुघुतिया के गीत , घुघुती की रेसिपी और घुघुतिया के शुभकामना संदेश तथा उत्तरैणी मेला आदि बिंदुओं का संकलन करने की कोशिश की गई है।
घुघुतिया त्यौहार क्या है ? और कैसे मनाया जाता है ? ( GHUGHUTIYA TYOHAR )
पौष मास ख़त्म होने और माघ माह की संक्रांति के दिन भगवान सूर्य देव राशि परिवर्तन करके मकर राशि में विचरण करते हैं। चुकीं सूर्य भगवान के राशि परिवर्तन के दिन को संक्रांति कहते है। अतः इस त्यौहार को मकर संक्रांति के रूप में मनाया जाता है। इसके अलावा सूर्य मकर रेखा से कर्क रेखा की ओर मतलब उत्तर दिशा की तरफ खिसक जाते हैं। जिसे सूर्यदेव का उत्तरायण होना कहा जाता है। इस उपलक्ष में इसे उत्तरायणी पर्व का नाम दिया गया है। प्रकृति के इन परिवर्तनों के साथ कई शुभ और सकारात्मक परिवर्तन होने लगते हैं। इस शुभ घडी को समस्त भारत वर्ष में सभी सनातन समुदाय के लोग अलग अलग रूप और अलग नामों से त्यौहार मनाते हैं। मकर संक्रांति को उत्तराखंड में घुघुतिया त्यौहार ,घुगुतिया पर्व , पुषूडिया त्यार ,उत्तरैणी ,खिचड़ी संग्रात आदि नामों से बड़े धूम धाम से मनाया जाता है। कुमाऊं के कुछ हिस्सों में , सरयू नदी के दूसरे तरफ यह त्यौहार पौष मास के अंतिम दिन से मनाना शुरू करते हैं । इसलिए इसे पुष्उड़िया त्यार भी कहते हैं।
2023 में घुघुतिया त्यौहार 15 जनवरी 2023 को रविवार के दिन मनाया जायेगा। इस हिसाब से सरयू पार वाले 14 जनवरी मनाया जायेगा।

घुघुतिया कैसे मनाया जाता है | GHUGHUTIYA TYOHAR KAISE MANAYA JATA HAI ?
जैसा की हमको पता है कि मकर संक्रांति को उत्तराखंड में घुघुतिया पर्व या उत्तरैणी त्यार के नाम से मनाया जाता है। घुगुतिया पर्व या घुगुती त्यार में दान और स्नान का विशेष महत्त्व होता है।कहा जाता है कि इस दिन दिया हुवा दान 100 गुना होकर वापस आता है।पवित्र नदियों पर स्नानं के लिए इस दिन काफी भीड़ रहती है।घुघुतिया पर्व पर बागेश्वर का और सरयू के स्नानं का विशेष महत्त्व है। मकर संक्रांति की पहली रात को कुमाऊं के लोग जागरण करते हैं। रात भर भजन करके अगले दिन सर्वप्रथम तिल और जौ के साथ स्नान करते हैं। तत्पश्यात कई गावों में अपने से बड़ो के पाँव छूकर आशीर्वाद लेने की परम्परा है। जिसको कुमाउनी में पैलाग कहते हैं। कुमाऊं में घुघुतिया त्यौहार पर कौओ को विशेष महत्त्व दिया जाता है। जो भी पकवान बनता है उसमे से कौवों के लिए पहला हिस्सा अलग रख लिया जाता है। इस दिन विशेष पकवान बनाये जाते हैं। शाम को इस त्यौहार का सबसे खास पकवान आटे और गुड़ के घोल से घुगुती बनाई जाती है। इसी पकवान के नाम पर इस त्यौहार को घुघुतिया त्यौहार कहा जाता है। इस पकवान को बनाने के पीछे एक लोक कथा भी जुडी है ,जिसे इस लेख में आगे बताएंगे।आटे और गुड़ के इस पकवान घुघतो की माला बनाकर बच्चे दूसरे दिन सुबह कवों को बुलाते हैं।और घुघते खाने का आग्रह करते हैं। इस अवसर पर , छोटे छोटे बच्चे “काले कावा काले घुघती मावा खा ले “का गीत गाते हैं।
घुघुतिया पर्व पर कविता | घुघुतिया के गीत
मकर संक्रांति , उत्तरायणी ( घुघुतिया ) के दूसरे दिन बच्चे , कौओं के हिस्से का खाना बाहर रख कर ,अपने गले मे घुघुती की माला पहन कर यह विशेष कुमाउनी गीत/ कविता गातें है :-
काले कावा काले । घुघुती मावा खा ले ।।
लै कावा लगड़ । मीके दे भे बाणों दगड़।।
काले कावा काले । पूस की रोटी माघ ले खाले ।
लै कावा भात । मीके दे सुनो थात ।।
लै कावा बौड़ । मीके दे सुनु घोड़।।
लै कावा ढाल । मीके दे सुनु थाल।।
लै कावा पुरि ।। मीके दे सुनु छुरी।।
काले कावा काले घुघुती माला खा ले।।
लै कावा डमरू ।। मीके दे सुनु घुंघरू ।।
लै कावा पूवा ।। मीके दीजे भल भल भुला।।
काले कावा काले। पुसे की रोटी माघ खा ले।।
काले कावा काले । घुघती माला खा ले ।।
घुघुतिया त्यौहार पर आधारित लोक कथाएँ | Ghugutiya festival Story
उत्तराखंड के लोक पर्व घुगुतिया पर अनेक कथाएं प्रचलित हैं ।जिनमे से कुछ लोक कथाओं का वर्णन हम अपने इस लेख में कर रहे हैं। इन कथाओं के आधार पर आपको यह जानने में आसानी होगी कि, मकर सक्रांति को घुघुतिया त्यौहार के रूप में क्यों मनाते हैं ? ( ghughutiya Festival in hindi )
घुगुतिया की पहली लोक कथा :-
कहा जाता है, कि प्राचीन काल मे पहाड़ी क्षेत्रों में एक घुघुती नाम का राजा हुवा करता था। एक बार अचानक वह बहुत बीमार हो गया। कई प्रकार की औषधि कराने के बाद भी वह ठीक नही हो पाया , तो उसने अपने महल में ज्योतिष को बुलाया। ज्योतिष ने राजा की ग्रहदशा देख कर बताया कि उस पर भयंकर मारक योग चल रहा है। इस मारक दशा का उपाय ज्योतिष ने राजा को यह बताया कि , राजा अपने नाम से आटे और गुड़ के पकवान कौओं को खिलाएं । इसके उनकी मारक दशा शांत होगी। क्योंकि कौओं को काल का प्रतीक माना जाता है। यह बात सारी प्रजा को बता दी गई। प्रजा ने मकर संक्रांति के दिन आटे और गुड़ के घोल से घुगुति राजा के नाम से पकवान बनाये और उनको सुबह सुबह कौओं को बुलाकर खिला दिया।
उत्तरायणी, घुगुतिया पर आधारित दूसरी लोक कथा :-
घुघुतिया पर्व पर कुमाऊं के चंद वंशीय काल की एक महत्वपूर्ण कथा है । घुगुतिया पर्व के बारे यह कथा अधिक यथार्थ लगती है। मगर प्रसिद्ध इतिहासकार बद्रीदत्त पाण्डेय जी ने अपनी किताब कुमाऊं का इतिहास में इस किस्से का जिक्र नही किया है। ghughutiuya festival 2023
कुमाऊं में चंदवंश के शाशन में एक राजा हुए, जिनका नाम था , कल्याण चंद । राजा की कोई संतान नही थी।इस कारण राजा बहुत चिंतित रहते थे। और उनका मुख्यमंत्री बहुत खुश रहता था। क्योंकि वह सोचता था, कि एकदिन राजा मर जायेगा , तो इस राज्य का राजा वह स्वयं बन जायेगा। ज्योतिषियों और कुल पुरोहितों के सलाह मशवरे के बाद ,एक दिन राजा कल्याण चंद और उनकी रानी , बागेश्वर भगवान बागनाथ के मंदिर में गए। वहां उन्होंने भगवान भोलेनाथ से पुत्र रत्न की प्राप्ति का आशीर्वाद मांगा। और भगवान भोलेनाथ की कृपा से राजा को पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। राजा ने अपने पुत्र का नाम निर्भयचंद रखा। महारानी निर्भयचंद को प्यार से घुघुती बुलाया करती थी। रानी ने घुघती को मोतियों की माला पहनाई थी। इस माला को घुघुती बहुत पसंद करता था। जब भी घुघुती परेशान करता था ,तो रानी बोलती थी तेरी माला को कौओं को दे दूंगी। जैसे गाँव मे माताएं अपने बच्चे को बोलती हैं, “लै कावा लीज ” वैसे ही रानी भी अपने पुत्र को बोलती थी काले कावा काले ,घुघती की माला खा ले । और घुघुती शैतानी करना बंद कर देता था। बार बार कौओं को आवाज देने के कारण वहां कई कौवे आ जाते थे । उनको रानी कुछ न कुछ खाने को दे देती ,तो कौवे भी वही आस – पास ही रहने लगे। और घुघुती भी उनको देखकर खेलता रहता था।
इधर राजा का मुख्यमंत्री ,राजा की संतान को देखकर द्वेष भाव रखने लगा था । क्योंकि राजा की संतान की वजह से उसके हाथ मे आया ,अच्छा खासा राज्य जा रहा था। इसी द्वेष भाव के चलते ,उसने घुघुती को मारने की योजना बनाई । एक दिन मौका देखकर , दुष्ट मुख्यमंत्री बालक घुघुती को जंगल की ओर मारने के लिए ले गया। कौओं ने मुख्यमंत्री को यह कार्य करते हुए देख लिया ,और सारे कौए मंत्री के पीछे पीछे लग गए ,और मौका मिलते ही, वे मंत्री को चोंच भी मारने लगे । इसी छीनाझपटी में ,घुघुती की माला कौओं के हाथ लग गई। और कौए इस माला को लेकर राजभवन आ कर राजा रानी के सामने रख कर इधर उधर उड़ने लगे।
राजा और रानी समझ गए कि उनका पुत्र किसी संकट में है,और कौवे उनके पुत्र के बारे में जानते हैं। राजा तुरंत अपने सैनिकों के साथ कौओं के पीछे पीछे चल दिया। कौए राजा को उस स्थान पर ले गए जहाँ, मंत्री घुघुती को लेकर गया था। वहाँ राजा के आदेश से सिपाहियों ने मंत्री को पकड़ लिया और घुघुतिया को छुड़ा लिया। राजा कौओं की बहादुरी से बहुत खुश हुए ,उन्होंने समस्त राज्य में घोषणा करवा दी कि , सब लोग विशेष पकवान बना कर राज्य के सभी कौओं को खिलाएं। कहते हैं, कि राजा का यह आदेश सरयू पार वालों को एक दिन बाद में मिला, इसलिए सरयू पार वाले कौओं को एक दिन बाद में घुगुति खिलाते हैं। और सरयू वार वाले पहले दिन ही खिला देते हैं। उनके घुघुतिया पौष माह के अंतिम दिन बनती है। इसलिए घुघुतिया को पुष्उड़िया त्यौहार भी कहते है। और कौओं को बुलाते समय यह लाइन गाते हैं “पुषे कि रोटी माघे खाले ”
घुघुतिया कैसे बनाया जाता है? | घुघुत बनाने की विधि | ghughuti recipe in hindi –
कुमाउनी त्यौहार का पकवान घुघुती बनाना बहुत आसान है। इसे अच्छे खस्ते घुघुती बना के बहुत स्वादिष्ट लगते हैं। घुघुती बनाने के लिए सर्वप्रथम गुड़ को पानी मे पका कर उसका पाक बना कर रख लेते हैं। फिर आवश्यकता अनुसार आटा निकाल कर उसमें, सूजी मिला कर, सौंफ और सूखा नारियल मिलाकर ,गुड़ के पाक से गूथ लेते हैं। घुघती को सॉफ्ट और खस्ता बनाने के लिए इसमें सूजी और , गूथते समय घी का प्रयोग करते हैं। इसके अलावा इसमे आप और सूखे मेवे मिला सकते हैं। आटे को कुछ इस प्रकार गुथे ,न अधिक सख्त हो और न अधिक गीला हो। फिर इसके घुघुती आकार में बना लें। घुघुतिया का आकार हिंदी के ४ की तरह मिलता जुलता होता है। जितनी आपको घुघुती चाहिए,उतनी बना लीजिए बचे हुए, आटे का आप रोटी जैसे फैलाकर ,तिकोना काट कर उसके खजूर पकवान बना कर उसे लंबे समय के लिए रख सकते हैं। आटे को घुघती के आकार में बना कर उसे गहरे तेल में तल लेते हैं।
लाटू देवता की कहानी यहाँ पढ़े …..
उत्तरायणी कौतिक ,उत्तरायणी का मेला :-
उत्तराखंड त्यौहार के सबसे बड़े त्यौहार घुगुतिया के उपलक्ष्य में , बागेश्वर में ऐतिहासिक उत्तरायणी मेले का आयोजन होता है। कहा जाता है, यह मेला चंद राजाओं के समय से चलता आया है। क्योंकि सनातन धर्म मे ,मकर संक्रांति पर दान और स्नान का विशेष महत्व बताया गया है। इसलिए लोग सरयू के तट पर पहले से ही स्नान के लिए इस दिन काफी संख्या में एकत्रित होते थे। धीरे धीरे यह मेले का रूप में विकसित हो गया। बागेश्वर उत्तरायणी का मेला कुमाउनी संस्कृति का बहुत ही खास मेला है। इसमे आपको पूरे कुमाऊं की संस्कृति और सभ्यता के दर्शन एक स्थान पर मिल जाते हैं। कुमाऊं के अलग अलग लोक नृत्यों और लोक गीतों की मनमोहक धुनें, कानो में शहद घोलती है। लोकवाद्यों के ताल पर , झोड़ा चाचेरी की खनक अंदर से निकलती है। इस मेले में आपको उत्तराखंड कुमाऊं और पड़ोसी देश नेपाल के पहाड़ी इलाकों की विशिष्ट चीजे, प्राकृतिक जड़ी बूटियां और अन्य कई प्रकार के हस्तनिर्मित उत्पाद खरीदने को मिल जाएंगे। इसी लिए कहते हैं कि बागेश्वर का उत्तरायणी मेला अपने आप मे एक विशिष्ट मेला है।
घुघुतिया त्यौहार की शुभकामनाएं | घुघुतिया त्यौहार WISHES
घुघती त्यार की शुभकामनाएं लिखने के लिए कुमाउनी में एक लाइन सबसे बेस्ट है। जो कि कुमाउनी आशीष गीत का मुखड़ा है । यह घुगुतिया कि शुभकामना इस प्रकार है।
” जी राया जागी राया ।
यो दिन यो बार ,हर साल
घुघुतिया त्यार मनुने राया।।”
इसके आलावा आप घुघुतिया पर्व की शुभकामनाएं फ़ोटो यहाँ से डाऊनलोड कर सकते हैं। || Happy ghughuti image download , ghughuti photo wishes || ghughutiya image || Uttrayni image, || Happy ghughutiya 2023 आदि ghughuti wishesh download करके अपने प्रियजनों को भेज सकते हैं। या इसमे से जानकारी लेकर घुगुतिया पर निबंध या घुघुतिया पर निबंध लेखन भी कर सकते हैं।
“मित्रों उपरोक्त लेख में हमने उत्तराखंड की मकर संक्रांति घुगुतिया 2023 के बारे में संक्षिप्त जानकारी, कहानी,गीत और बनाने की विधि के बारे में जानकारी सांकलित करके इसे एक जानकारी भरा लेख बनाने की पूरी कोशिश की है। यदि यह कोशिश आपको अच्छी लगी तो शेयर अवश्य करें।
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