पहाड़ के एक गावँ में एक भयानक मसाण लग गया था। शाम ढलते ही , मशाण का गावँ में आगमन हो जाता था । और
Category: Folk stories
लोक कथाएँ वर्ग में हमने ,उत्तराखंड तथा अन्य राज्यों लोक कथाओं का परिचय और संकलन किया है। इस कैटिगरी में देवभूमी दर्शन टीम की कोशिश है कि, प्राचीन समय मे दादा दादी द्वारा सुनाई जाने वाली लोककथाओं को यथार्थ रूप में आधुनिक डिजिटल माध्य्म द्वारा प्रसिद्ध लोक कथाओं को आपके बीच मे लाने का पुण्य प्रयास है।
इस कैटिगरी में अभी तक बहुत सी उत्तराखंड की लोक कथाओं का संकलन हो गया है। देवभूमी दर्शन से कुमाउनी लोक कथा और गढ़वाली लोक कथा सुनाने का उद्देश्य मात्र यही है कि । लोगो को अपने बचपन की याद ताजा हो और अपने पहाड़ प्रेम का अहसास हो। तो मित्रों उत्तराखंड की लोक कथाएँ पढ़े और शेयर अवश्य करे। कथाएं पढ़ने के लिए इसी कालम में आगे बढ़े। इसके साथ साथ हम इस कॉलम में देश की अन्य राज्यों की लोक कथाओं व् बच्चों की शिक्षाप्रद कहानियों का संकलन कर रहें हैं।

कुमाऊं में एक जगह का नाम है, बाराकोट, उसके पास कोठयार गावँ में एक लछुवा नाम का आदमी रहता था । लछुवा के सात बेटे

उत्तराखंड वीर भड़ों का राज्य है। जितना यह प्राकृतिक रूप से सुंदर है, उतने ही वीर, मेहनती, साहसी यहाँ के निवासी होते है। उत्तराखंड के

उत्तराखंड में एक से बढ़कर एक विभूतियों ने जन्म लिया है। उत्तराखंड में वीर पुरुषो के साथ -साथ कई वीरांगना नारियों ने भी उत्तराखंड के

उत्तराखंड के बागेश्वर जिले में बिलौनासेरा में एक बहुत बड़ा खेत है। जिसका नाम सासु बुवारी खेत या सास बहु का खेत के नाम से

उत्तराखंड के जंगल की आग पर आधारित लोक कथा ! वर्षों पुरानी बात है जब आज ही की तरह बैसाख और जेठ के महीने हमारे

गढ़ देवी या गड़देवी उत्तराखंड की प्रमुख देवी है। यह देवी सम्पूर्ण उत्तराखंड में नाथपंथी देवताओं के साथ अलग अलग रूप में पूजी जाती है।

मित्रों उत्तराखंड की सम्रद्ध प्रकृति में विचरण करने वाले पक्षियों की ध्वनि से उत्तराखंड की कोई न कोई लोक कथा अवश्य जुड़ी है। इसे एक

परिचय :- काफल उत्तराखंड का एक प्रसिद्ध जंगली फल है। यह फल हिमालयी पहाड़ो में प्रतिवर्ष अप्रैल और मई में होता है। कई दिब्यगुणो को

मित्रों कहा जाता है कि , पहाड़ों में होने वाले प्रमुख वृक्ष चीड़ के पेड़ को श्राप (फिटकार ) मिला होता है। यह श्राप कैसे